Sunday 10 April 2011

Main baat bhagat ki karta hoon


Came across a great poem, you should know.
मैं बात भगत की करता हूँ…
कोई एक गाल पे वार करे, दूजा उसके सम्मुख कर दो….
तुम जीवन अपना इसी तरह, निश्चित विनाश उन्मुख कर लो…
ये बात तो तेरी सहनशक्ति, सामर्थ्य शत्रु का तोल रही…
अब युद्ध के व्यापारों मे है, इस विनम्रता का मोल नही…
निष्फल प्रयोग निज जीवन पे, इसका मैं खंडन करता हूँ…
मैं गाँधी का हूँ भक्त नही, मैं बात भगत की करता हूँ…
अपनों के सर हैं कुचल रहे, तुमको आता आक्रोश नही…
क्यू क्षीण नपुंसक भाँति खड़े, क्यूँ तुममे कोई जोश नही…
जब मर्यादा लुट जाती है, तुम अमन की बातें करते हो…
जो रक्त कभी भी उबल गया, तुम उसपे पानी मलते हो…
जिनका है अब भी मान बचा उनका आवाह्न करता हूँ…
मैं गाँधी का हूँ भक्त नही, मैं बात भगत की करता हूँ…
यदि सिंह अहिंसक हो जाए, गीदड़ भी शौर्य दिखाते हैं…
यदि गरुड़ संत सन्यासी हो, बस सर्प पनपते जाते हैं…
इस शांति अहिंसा के द्वारा अपना विनाश आरंभ हुआ…
जब थे अशोक ने शस्त्र तजे, भारत विघटन प्रारंभ हुआ…
जो भूत की कालिख हटा सके, कुछ ऐसा साधन करता हूँ…
मैं गाँधी का हूँ भक्त नही, मैं बात भगत की करता हूँ…
हर हफ्ते एक उपवास करे, ये धर्मभीरु का लक्षण है…
पैन्सठ दिन भूखे पेट रहे, यह मूक युद्ध का दर्शन है…
है यदि अहिंसा शक्तिमयी, भारत क्यूँ टूट बिखर जाता…
इन धर्म के ठेकेदारों में, इंसान कभी क्यूँ मर जाता…
यूँ जाति धर्म आधारों पे, मैं नही विभाजन करता हूँ…
मैं गाँधी का हूँ भक्त नही, मैं बात भगत की करता हूँ…
जिस आत्मकथा की पुस्तक में, जीवन पे प्रयोग समाए हो…
जिसकी आंदोलन आँधी ने, उसके ही मान भरमाये हो…
उसने जिसने बलिदानो को, आतंक तुला मे तोल दिया…
उसको कहते हो राष्ट्रपिता, ये राष्ट्र को कैसा मोल दिया…
जो शत्रु के हाथों प्राण तजे, मैं उसका वंदन करता हूँ…
मैं गाँधी का हूँ भक्त नही, मैं बात भगत की करता हूँ

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